योग और स्वास्थ्य (yog and swasthya) :- योग बहुचर्चित विषय है। समाज के प्रायः सभी वर्गों ने योग के अध्ययन एवं अभ्यास में रुचि ली है। पिछले कुछ वर्षों में योग अपने मात्र भारतीय स्वरूप से हटकर अन्तर्राष्ट्रीयता की ओर, व्यक्तिगत साधन मात्र से हट कर वैज्ञाकिता की ओर अग्रसर होता रहा है। आज का बहुचर्चित योग अपने प्राचीन औपनिषदिक स्वरूप से और अधिक व्यापक है जिसके कारण योग जन–जन तक सरल रूप में प्रसारित हो रहा है। योग की मूलधारा आध्यात्मिक है। यह तत्वज्ञान एवं तत्त्वानुभूति का विज्ञान है। यह एक विशिष्ट प्रकार का विज्ञान है जो पदार्थ, जीवन तथा चेतना को एक साथ लेकर अग्रसर है तथा विज्ञान एवं अध्यात्म की खाई पर सेतुबंध का कार्य करता है।
श्रीमद्भागवत् गीता के अनुसार योग दुःख या वेदनाओं से मुक्ति की अवस्था है। योगाभ्यास से मन स्थिर हो जाता है और सत्य से विचलित नहीं होता । योग पर होने वाले अधिकाँश वैज्ञानिक शोध कार्यों का उद्देश्य भी योगाभ्यास के क्रियाशारीर तथा चिकित्सीय प्रभावों का आकलन करना है। व्यवहारिक दृष्टि से योग मानसिक, शारीरिक तथा आध्यात्मिक विकास का क्रम है। योग का लक्ष्य शरीर को मानसिक शान्ति प्राप्त करने के लिये तैयार करना है, जो कि परब्रह्म प्राप्ति के लिये आवश्यक है। Yog and Swasthya
आजकल योग से निम्नलिखित दृष्टिकोणों में रुचि ली जा रही है :-
- मानसिक तनाव के निराकरणार्थ ।
- शारीरिक रोगों के चिकित्सार्थ ।
- शरीर सौष्ठव परिवर्धनार्थ ।
- आध्यात्मिक विकास हेतु योग का अभ्यास ।
व्याधि के अनुसार योगाभ्यास
सूक्ष्म व्यायाम (Yog and Swasthya)
योगासनों के पूर्व शरीर को स्फूर्तिपूर्वक बनाने तथा जो दिन में आसन व व्यायाम आदि करने में असमर्थ हैं वे केवल सूक्ष्म व्यायाम, प्राणायाम व ध्यान का पूर्ण निष्ठा से अधिक अभ्यास करके अपने समस्त रोगों से मुक्ति पा सकते हैं। विशेष रूप से गठिया के रोगी एक–एक सूक्ष्म व्यायाम 10 से 100 बार तक करें। सूक्ष्म व्यायाम दीर्घ श्वसन के साथ करने पर विशेष लाभ होता है।
मुख्य प्राणायाम
- भस्त्रिका
- कपालभाति
- बाह्य
- उज्जायी
- अनुलोम–विलोम
- भ्रामरी
- उद्गीथ
- प्रणव
सामान्य नियम :-
- हमेशा शुद्ध सात्विक, हवादार, निर्मल स्थान पर अभ्यास करें।
- आपका मेरूदण्ड सीधा होना चाहिये । सिद्धासन, वज्रासन या पद्मासन में बैठना उपयुक्त है।
- प्राणायाम करने के लिये कम से कम 4-5 घंटे पूर्व भोजन कर लेना चाहिये ।
- प्राणायाम करने वाले व्यक्ति को अपने आहार–विहार एवं आचार विचार पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।
- सुखकारी निर्मल वस्त्र धारण करे एवं आसन के रूप में कम्बल, दरी, चादर, रबर – मैट का प्रयोग करें।
- श्वास सदा नासिका से ही लेना चाहिए ।
- नगरों में जहाँ पर प्रदूषण का प्रभाव अधिक हो वहाँ पर प्राणायाम करने से पहले घी का दीपक, अगरबत्ती या धूपबत्ती जलाकर उस स्थान को सुगन्धित करने से बहुत अच्छा लाभ प्राप्त होता है।
प्राणायाम का सम्पूर्ण अभ्यास क्रम :-
- भस्त्रिका प्राणायाम – 5 से 10 मिनट प्रतिदिन ।
- कपालभाति प्राणायाम – 15 मिनट से लेकर असाध्य रोगों में 1-1 घण्टा करके 2 से 3 घण्टे तक प्रतिदिन किया जा सकता है। कपालभाति खाली पेट या खाने से पहले करें।
- बाह्य प्राणायाम- 5 से लेकर ब्रह्मचर्य की सिद्धि व कुण्डली जागरण हेतु तथा यौन रोगों जैसे – योनि व गुदभ्रंश आदि में 51 बार तक करें। सामान्य रूप से 5 से 11 बार पर्याप्त है।
- उज्जायी प्राणायाम- 5 से 11 बार तक। सामान्यतः 3 बार तथा थायरॉइड’, स्नोरिंग, स्लीप एप्निया’ आदि में 11 से 21 बार तक करें।
- अनुलोम-विलोम प्राणायाम – 15 मिनट से लेकर असाध्य रोगों में दिनभर में 3 से 6 घण्टे तक करना चाहिए । अनुलोम-विलोम खाने के आधा घण्टे बाद भी कर सकते हैं।
- भ्रामरी प्राणायाम – 5 बार से लेकर 5 मिनट तक करें।
- उद्गीथ प्राणायाम – 5 बार से लेकर 5 मिनट तक करें।
- ओङ्कार ध्यान – 2-3 मिनट से लेकर आवश्यकतानुसार।
- नाड़ीशुद्धि ध्यान – ऑटो इम्यून डिज़ीज, लो इम्युनिटी, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी 11,12,13,14, कम्पवात व MND आदि में 15 मिनट से लेकर 1 घण्टे तक किया जा सकता है, सम्पूर्ण नाड़ियों की शुद्धि होने से देह पूर्ण स्वस्थ, कान्तिमय एवं बलिष्ठ बनता है। संधिवात, आमवात, स्नायु दुर्बलता आदि समस्त वात रोग, मूत्ररोग, धातुरोग, शुक्रक्ष, अम्लपित्त, शीतपित्त आदि समस्त पित्त रोग, सर्दी, जुकाम, साइनस, अस्थमा, खाँसी, टॉन्सिल आदि समस्त कफ रोग दूर होते हैं। इसके द्वारा त्रिदोष का प्रशमन होता है। नकारात्मक चिन्तन में परिवर्तन होकर सकारात्मक विचार बढने लगते हैं। आनन्द, उत्साह एवं निर्भयता की प्राप्ति होने लगती है। इस प्राणायाम से तन, मन, विचार एवं संस्कार सब परिशुद्ध होते हैं।
- शीतली प्राणायाम- ध्यानात्मक आसन में बैठकर हाथ घुटनों पर रखें। जिह्वा को नाली नूमा मोड़कर मुख खुला रखते हुए मुख से पूरक करें। जिह्वा से धीरे-धीरे श्वास लेकर फेफड़ों को पूरा भरें। कुछ क्षण रोककर मुख को बंद करके दोनों नासिकाओं से रेचक करें। तत्पश्चात पुनः जिह्वा मोड़कर मुख से पूरक व नाक से रेचक करें। उच्च रक्तचाप15,16,17,18,19 पित्तवृद्धि, अनिद्रा, जिह्वा, मुख एवं कण्ठ के रोगों में लाभप्रद है, गुल्म, प्लीहा, ज्वर, अजीर्ण व हृदयगति तीव्रता आदि में 5 से 11 बार तक करें। (श्वास – कास व कफ के रोगी न करें) इसकी सिद्धि से भूख-प्यास पर विजय प्राप्त होती है। उच्च रक्तचाप को कम करता है, रक्तशोधन भी करता है। शीतकाल में इसका अभ्यास कम करें। कुम्भक के साथ जालन्धर बंध की लगा सकते हैं।
- शीत्कारी प्राणायाम – ध्यानात्मक आसन में बैठकर जिह्वा को ऊपर तालु में लगाकर ऊपर-नीचे की दंत पंक्ति को एकदम सटाकर होठों को खोलकर रखें। अब धीरे-धीरे सी-सी की आवाज करते हुए मुख से श्वास लें और फेफड़ों को पूरी तरह भर लें। जालन्धर बंध लगाकर जितनी देर आराम से रोक सकें, रूकें। फिर मुख बंद कर नाक से धीरे-धीरे रेचक करें। 8-10 बार का अभ्यास पर्याप्त है। शीतकाल में इस आसन का अभ्यास कम करना चाहिए। यह शीतली प्राणायाम की तरह ही उपयोगी है, दन्तरोग, पायरिया आदि के अतिरिक्त ऊर्ध्वजत्रुगत रोगों को भी दूर करता है।
- चन्द्रभेदी प्राणायाम – पित्त रोगों में लाभप्रद, मन की उत्तेजनाओं को शान्त करता है, शरीर में शीतलता आने से थकावट एवं उष्णता दूर होती है। इसे जालन्धर व मूल बंध के साथ करना उत्तम है। तत्पश्चात बाँयी नाक से रेचक करें।
- सूर्यभेदी प्राणायाम – वात व कफ रोगों में, रक्त एवं त्वचा के दोष, उदरकृमि, कुष्ठ, अजीर्ण, अपच, स्त्रीरोग आदि में लाभदायक है। कुण्डलिनी जागरण में सहायक है, वृद्धावस्था दूर रहती है, अनुलोम–विलोम के बाद कुछ समय इस प्राणायाम को करना चाहिए। कुम्भक के साथ सूर्यभेदी प्राणायाम करने से हृदयगति और शरीर की कार्यशीलता बढ़ती है एवं वजन कम होता है। इसके लिए इसके 27 चक्र दिन में दो बार करना जरूरी है।
- आभ्यन्तर प्राणायाम – बलवृद्धि व फेफड़ों की ऊर्जा बढ़ाने में लाभकारी ।
- कर्णरोगान्तक- कर्ण रोगों में लाभकारी। (कर्णस्राव होने पर न करें।) इस प्राणायाम में दोनों नासिकाओं से पूरक करके फिर मुँह व दोनों नासिकाएँ बंद कर पूरक की हुई हवा को बाहर निकालते हैं जैसे कि श्वास को कानों से बाहर निकालने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार दो–तीन बार करना पर्याप्त होता है।
नोट :- इस लेख (yog and swasthya) में हमने आपको योग और स्वास्थ के बारे में बताये है जिससे आप अपने जीवन को रोगमुक्त बना सकते है और एक खुशहाल ज़िंदगी का आनंद ले सकते है | इस तरह के और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए targetcareer.in पर विजिट करते रहें | yog and swasthya