आयुर्वेदिक औषधि सेवन की सामान्य विधि (Method of Consuming Ayurvedic Medicine) : आयुर्वेदिक औषधि का सेवन कैसे करना है, कब खाना है और कितना खाना है यह एक महत्वपूर्ण बात होती है सही तरीका से फायदा करने के लिए | आज हम आपको इस लेख में आयुर्वेदिक औषधि कितने प्रकार का होता है और खाने का सही समय क्या है इसके बारे में बताएँगे | इसके लिए आप इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें |
वटी या चूर्ण सेवन की विधि ( Vati or Churna Consuming Ayurvedic Medicine)
गोलियाँ (वटी) व चूर्ण- गोली व चूर्ण खाना खाने के लगभग 15 से 20 मिनट बाद लें। वात व कफ रोगों में गुनगुने जल से तथा पित्त रोगों में सामान्य जल से गोलियाँ व चूर्ण खाएँ। गोलियाँ चबाकर खाना उत्तम है। यदि गोली कड़वी हो तो बिना चबाए भी ले सकते हैं।
- मुक्तावटी, मधुनाशिनी (मधुकल्प) व कायाकल्प वटी इनका सेवन भोजन करने से लगभग एक घण्टा पहले ताजे पानी से करें।
- दस्त (अतिसार) अथवा अम्लपित्त के लिए सेवनीय चूर्ण खाने से पहले वैद्य का परामर्श लें।
भस्म /पुड़िया ( Bhasma Consuming Ayurvedic Medicine)
भस्म व रस आदि का मिश्रण करके जो पुड़िया में दवा दी जाती है, उसको खाना खाने से लगभग आधे से एक घण्टा पहले मधु, मलाई अथवा गुनगुने दूध से लेवें।
आसव-अरिष्ट( Aasav – Rishth Consuming Ayurvedic Medicine )
आसव–अरिष्ट सभी प्रकार के आसव, अरिष्ट खाना खाने के 10-15 मिनट बाद समान मात्रा में जल मिलाकर उपयोग में लाए जाते हैं।
क्वाथ/काढ़ा ( Kwath/Kadha Consuming Ayurvedic Medicine )
क्वाथ की औषधियों की मात्रा यदि 10 ग्राम है तो उसको लगभग 400 मिली पानी में पकाएँ तथा उबालते हुए जब लगभग 100 मिली शेष रह जाए तब छानकर पानी पी लें। यदि अधिक मात्रा में पानी न पिया जाए तो उबालकर 50 मिली तक कम करके पिएं। क्वाथ का स्वाद यदि कड़वा हो तो शहद या मीठा मिलाकर भी पी सकते हैं। परन्तु मीठे के बिना पीना अधिक लाभप्रद है। क्वाथ की औषधियों को पकाने से लगभग 8-10 घण्टे पहले भिगोकर रखना अधिक गुणकारी होता है।
एक्यूप्रेशर ( Aquapressure )
रोगानुसार निर्दिष्ट बिन्दुओं पर 30 से 40 बार अंगुष्ठ आदि के माध्यम से दबाव डालें। एक्यूप्रेशर खाने से पहले करें। मर्म ( नाजुक ) स्थानों पर मध्यम बल का प्रयोग करते हुए दबाएँ। शारीरिक पीड़ाओं को दूर करने के लिए यह चमत्कारिक विधि है। यद्यपि प्रारम्भ में यह कष्टप्रद प्रतीत होता है, परन्तु इसका परिणाम बहुत सुखद है।
मालिश–मालिश सदा ही हृदय की ओर उचित बल का प्रयोग करते हुए शनैः–शनैः करनी चाहिए ।
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क्वाथ स्नान ( Decoction Wath )
- गंगानुसार दिए गए क्वाथ से यदि स्वेदन करना हो तो निर्दिष्ट औषध को 1-1.5 लीटर पानी में प्रेशर कुकर में डालकर पकाएँ। जब सीटी से वाप्प निकलने लगे तब सीटी को हटाकर उसके स्थान पर गैस वाला रबड़ का पाइप लगा दें तथा पाइप के दूसरे सिरे से निकलती हुई वाष्प से रोगयुक्त स्थान पर वाप्प दें। पाइप के जिस सिरे से वाष्प निकलती है, वहाँ कपड़ा लगाकर रखें। अन्यथा तेज गर्म जल के छोटे शरीर को जला सकते हैं। उचित समय तक वाष्प लेने के बाद शेष बचे जल से पीड़ायुक्त स्थान पर मध्यम गुनगुना पानी डालते हुए सिकाई करें।
- यदि वाष्प न सेंकनी हो तो औषध को आवश्यकतानुसार 3-4 लीटर पानी में पकाएँ। जब उबलते लगभग आधा पानी शेष रह जाए तो उंचित गर्म जल को कपड़े आदि के माध्यम से लेकर रोगयुक्त स्थान की सिकाई करें।
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योगासन व प्राणायाम ( Yogasana and Pranayam )
प्रायः सभी साध्य – असाध्य रोगों में प्राणायाम का चमत्कारिक लाभ होता है। अपनी शक्ति व सामर्थ्य के अनुसार खाली पेट प्राणायाम नियमित रूप से अवश्य करें। संधिवात में सूक्ष्म व्यायाम, कमर व रीढ़ के दर्द में मेरुदण्ड के आसन करने से निश्चित लाभ मिलता है।
नोट : किसी भी आयुर्वेदिक औषधि जैसे वटी, क्वाथ, भष्म और आसव/अरिष्ट का सेवन करने से पहले चकित्सक परामर्श जरूर ले लें | हमने आपको जो भी बताया यह एक सामान्य जानकारी थी |
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